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Sunday, 27 November 2022

क्लास-10 अध्याय-13 विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव

 क्लास-10 अध्याय-13 विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव


विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव की खोज सन् 1820 में वैज्ञानिक हैंस क्रिश्चियन ऑर्स्टेड ने की । इन्होंने ने अकस्मात् ही देखा कि धातु के चालक से विद्युत धारा प्रवाहित कराने पर दिक्सूचक सुई विक्षेपित होती है । इन्हीं के सम्मान में चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक ऑर्स्टेड रखा गया ।

⦁ दिक्यूचक सूई- यह एक छोटी छड़ चुंबक के समान होती है । यह एक ऐसी युक्ति होती है जो दिशा का ज्ञान कराती है । चुंबकीय दिक्सूचक उत्तरी ध्रुव दिशा की ओर संकेत करता है । यह यंत्र क्षैतिज दिशा का ज्ञान करवाता है ।
“समान ध्रुवों में परस्पर प्रतिकर्षण और असमान ध्रुवों में परस्पर आकर्षण होता है” ,यह चुंबकीय दिक्सूचक का सिद्धांत है ।
⦁ दिक्सूचक सूई का विक्षेपित होना –
यह एक छोटी छड़ चुंबक के समान होती है । जब इसे धातु के तार में प्रवाहित विद्युत धारा के समीप लाते है तो विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव के कारण दिक्सूचक सूई पर एक बलयुग्म कार्य करता है , जिसके कारण दिक्सूचक सूई में विक्षेप उत्पन्न होता है ।

⦁ चुंबक-

वह पदार्थ या वस्तु जो चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करे और अन्य चुंबक या चुंबकीय पदार्थों को अपनी ओर आकर्षित या प्रतिकर्षित करे ,उसे चुंबक कहते है ।
चुंबक के दो ध्रुव होते है –
1. उत्तर दिशा की ओर संकेत करने वाले ध्रुव को उत्तरोमुखी ध्रुव अथवा उत्तर ध्रुव (N) कहते है ।
2. दक्षिण दिशा की ओर संकेत करने वाले ध्रुव को दक्षिणोमुखी ध्रुव अथवा दक्षिण ध्रुव (S) कहते है ।
⦁ चुंबकीय क्षेत्र- किसी चुंबक के चारों ओर का वह क्षेत्र जिसमें उसके बल का संसूचन किया जाता है, उस चुंबक का चुंबकीय क्षेत्र कहलाता है ।
⦁ चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं का निरूपण-

ड्रॉइंग बोर्ड पर एक सफेद कागज लगाते है । इसके बीचोंबीच एक छड़ चुंबक को रखते है । अब लौह चूर्ण को चुंबक के चारों ओर समान रूप से छितरावक की सहायता से छितराते (बिखराते) हैं तो हम देखते हैं कि लौह चूर्ण स्वयं चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के अनुदिश संरेखित हो जाताहै ,इसे ही चुंबकीय चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं निरूपण कहते है ।
⦁ चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के गुण या विशेषताएं या गुणधर्म-

1. चुंबक के बाहर चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की ओर होती है ।
2. चुंबक के भीतर चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा दक्षिणी ध्रुव से उत्तरी ध्रुव की ओर होती है ।
3. ये सदैव बंद वक्र बनाती है अर्थात् ये वक्राकार होती है ।
4. ये परस्पर एक दूसरे को कभी नहीं काटती है ।
5. जहाँ चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं अपेक्षाकृत अधिक निकट होती है ,वहाँ चुंबकीय क्षेत्र अधिक प्रबल होता है ।
6. जहाँ चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं अपेक्षाकृत दूर-दूर होती है ,वहाँ चुंबकीय क्षेत्र दुर्बल होता है ।
⦁ दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम-
जब दक्षिण-हस्त का अंगुठा विद्युत धारा की दिशा में होता है तो अंगुलियाँ चालक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा में लिपट जाती है ,इसे ही दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम कहते है ।

इस प्रकार हम दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम की सहायता से किसी धारावाही चालक में उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा ज्ञात कर सकते है ।
⦁ किसी विद्युत धारावाही चालक के कारण चुंबकीय क्षेत्र- किसी धारावाही चालक में चुंबकीय क्षेत्र की दिशा या पैटर्न को ज्ञात किया जा सकता है । इसे हम निम्न क्रियाकलापों (प्रयोगों) की सहायता से समझ सकते है –
1. सीधे चालक से विद्युत धारा प्रवाहित होने के कारण चुंबकीय क्षेत्र-

किसी सीधे धारावाही चालक तार के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र संकेंद्र वृतों के रूप में होता है । जब चालक तार समीप वाले संकेंद्र वृत के किसी बिन्दू P पर दिक्सूचक को रखते है तो दिक्सूचक अधिक विक्षेप उत्पन्न करता है लेकिन जब दिक्सूचक को अधिक दूरी पर स्थित संकेंद्र वृत के किसी बिन्दू Q पर रखते है तो दिक्सूचक का विक्षेप घट जाता है । अतः हम कह सकते है कि चालक तार के समीप उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र प्रबल होता है व दूर जाने पर घटता जाता है क्योंकि चालक तार के समीप संकेंद्र वृत छोटे व पास-पास होते है जबकि दूर स्थित संकेंद्र वृत साइज में बड़े व दूर-दूर होते है ।
2. विद्युत धारवाही वृताकार पाश के कारण चुंबकीय क्षेत्र –

दक्षिण हस्त अंगुष्ठ नियम की सहायता से यदि दाहिने हाथ की अंगुलियाँ तार के ऊपर इस प्रकार लपेटी जाएँ कि अंगुठा तार में प्रवाहित धारा की दिशा में हो , तब अंगुलियों के मुड़ने की दिशा चुंबकीय क्षेत्र को प्रदर्शित करेगी ।
अतः वृताकार पाश के अन्दर चुंबकीय क्षेत्र मेज के तल के लम्बवत् तथा उर्ध्वाधरतः नीचे की दिशा में है जबकी पाश के बाहर चुंबकीय क्षेत्र मेज के लम्बवत् तथा उर्ध्वाधरतः ऊपर की ओर क्रियाशील होगा ।
3. परिनालिका में प्रवाहित विद्युत धारा के कारण चुंबकीय क्षेत्र –

पास-पास लिपटे विद्युतरोधी ताँबे के तार की बेलन की आकृति की अनेक फेरों वाली कुंडली को परिनालिका कहते है ।
किसी विद्युत धारावाही परिनालिका के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं का पैटर्न चित्र में दर्शाए गए पैटर्न के समान होता है । यह पैटर्न छड़ चुंबक के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के पैटर्न के समान होता है ।
परिनालिका के भीतर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ समांतर सरल रेखाओं की भाँती होती है । यह निर्दिष्ट करता है कि किसी परिनालिका के भीतर सभी बिन्दूओं पर चुंबकीय क्षेत्र समान होता है अर्थात् परिनालिका के भीतर एकसमान चुंबकीय क्षेत्र होता है ।

 विद्युत चुंबक –

परिनालिका के भीतर उत्पन्न प्रबल चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग किसी चुंबकीय पदार्थ जैसे नर्म लोहे को परिनालिका के भीतर रखकर चुंबक बनाने में किया जा सकता है । इस प्रकार बने चुंबक को विद्युत चुंबक कहते है ।

⦁ चुंबकीय क्षेत्र में किसी विद्युत धारावाही चालक पर चुंबकीय बल-

चुंबकीय क्षेत्र में किसी विद्युत धारावाही चालक पर लगने वाले चुंबकीय बल को फ्लेमिंग के वामहस्त (बायाँ हाथ ) नियम की सहायता से ज्ञात कर सकते है ।

इस नियम के अनुसार –
1. बाएँ हाथ की तर्जनी, मध्यमा व अंगुठे को इस प्रकार फेलाते हैं कि तीनों परस्पर लंबवत रहे ।
2. अंगुठा चुंबकीय बल को , तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र व मध्यमा विद्युत धारा की दिशा को दर्शाते है ।
इस ही वाम हस्त का नियम कहते है ।

⦁ फ्लेमिंग का दक्षिण हस्त नियम –

इस नियम के अनुसार-
1.दाएँ हाथ तर्जनी, मध्यमा व अंगुठे को इस प्रकार फेलाते हैं कि तीनों परस्पर लंबवत रहे ।
2. तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र को , मध्यमा चालक में प्रेरित विद्युत धारा तथा अंगुठा चालक की गति की दिशा को दर्शाते है ।

⦁ गैल्वेनोमीटर-

यह एक ऐसा उपकरण है जो किसी परिपथ में विद्युत धारा की उपस्थिति को संसूचित करता है ।

⦁ विद्युत मोटर-

विद्युत मोटर एक ऐसी युक्ति होती है जिसमें विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतरण होता है ।
विद्युत मोटर का उपयोग विद्युत पंखों ,रेफ्रिजरेटरों, विद्युत मिश्रकों ,वॉशिंग मशीन, कंप्यूटरों तथा MP-3 प्लेयरों आदि में किया जाता है ।

विद्युत मोटर की कार्य प्रणाली –

विद्युत मोटर में विद्युतरोधी पदार्थ की एक आयताकार कुंडली होती है,जो चुंबकीय क्षेत्र के दो ध्रुवों के मध्य इस प्रकार व्यवस्थित होती है कि इसकी AB व CD भुजाऐं चुंबकीय क्षेत्र के लंबवत रहे । कुंडली के दोनों सिरे विभक्त वलयों के दो अर्धभागों P व Q से संयोजित होते है । इन अर्धभागों की भीतरी सतह विद्युतरोधी होती है तथा धुरी से जुड़ी होती है । P तथा Q क्रमशः स्थिर चालक ब्रशों X व Y से संपर्कित रहते है । दोनों चालक ब्रश X व Y विद्युत स्रोत( विद्युत बैट्री) से जुड़े होते है ।
जब धारा प्रवाहित होती है तो यह X से होते हुए भुजा AB में पहुँचती है ,तो इस भुजा पर नीचे की ओर बल आरोपित होता है । आरोपित बल की दिशा फ्लेमिंग के वाम हस्त नियम की सहायता से ज्ञात करते है । जब धारा भुजा CD में आती है तो धारा की दिशा बदल जाती है जिससे लगने वाले बल की दिशा परिवर्तित होकर ऊपर की ओर हो जाती है ।
इस प्रकार किसी अक्ष पर घूमने के लिए स्वतंत्र कुंडली तथा धुरी वामावर्त घूर्णन करते है । आधे घूर्णन में Q का संपर्क ब्रश X से तथा P का संपर्क ब्रश Y से हो जाता है । अतः कुंडली में विद्युत धारा उत्क्रमित होकर पथ DCBA के अनुदिश प्रवाहित होती है जिससे AB व CD भुजाओं पर लगने वाले बलों की दिशा भी उत्क्रमित हो जाती है । अतः कुंडली तथा धुरी उसी दिशा में अब आधा घूर्णन और पूरा कर लेती है । प्रत्येक आधे घूर्णन के पश्चात विद्युत धारा के उत्क्रमित होने का क्रम बार-बार चलता रहता है । जिसके फलस्वरूप कुंडली तथा धुरी का निरंतर घूर्णन होता रहता है ।

⦁ व्यवसायिक विद्युत मोटरों में निम्न परिवर्तन किये जाते है –

1. स्थायी चुंबकों के स्थान पर विद्युत चुंबक प्रयोग किये जाते है ।
2. विद्युत धारावाही कुंडली में फेरों की संख्या अधिक होती है ।
3. कुंडली नर्म लोहे क्रोड पर लपेटी जाती है ।

⦁ दिक् परिवर्तक –

वह युक्ति जो परिपथ में विद्युत धारा के प्रवाह को उत्क्रमित कर देती है , उसे दिक् परिवर्तक कहते है । जैसे विद्युत मोटर में विभक्त वलय दिक् परिवर्तक का कार्य करते है ।

⦁ आर्मेचर-

नर्म लौह क्रोड व उस पर लपेटी गई कुंडली दोनों मिलकर आर्मेचर कहलाते है ।

⦁ प्रत्यावर्ती धारा –

ऐसी विद्युत धारा जो समान काल -अंतरालों के पश्चात अपनी दिशा में परिवर्तन कर लेती है ,उसे प्रत्यावर्ती धारा (ac) कहते है । जो युक्ति इस धारा को उत्पन्न करती है उसे ac जनित्र कहते है ।

⦁ दिष्ट धारा –

ऐसी विद्युत धारा जो समय के साथ अपनी दिशा परिवर्तित नहीं करती है ,उसे दिष्ट धारा (dc) कहते है । जो युक्ति इस धारा को उत्पन्न करती है उसे dc जनित्र कहते है ।

.विद्युत जनित्र- विद्युत जनित्र में यांत्रिक ऊर्जा का उपयोग चुंबकीय क्षेत्र में रखे किसी चालक को घूर्णी गति प्रदान करने में किया जाता है , जिसके फलस्वरूप विद्युत धारा उत्पन्न होती है । इसे विद्युत जनित्र का सिद्धांत कहते है ।
विद्युत जनित्र की कार्य प्रणाली –

चित्रानुसार विद्युत जनित्र में एक आयताकार कुंडली ABCD होती है, जिसे स्थायी चुंबक के दो ध्रुवों के बीच रखा जाता है । इस कुंडली के दोनों सिरे वलय R1 व R2 से संयोजित होते है । दोनों वलय धुरी के साथ संयोजित होती है । वलय R1 व R2 क्रमशः दो स्थिर चालक ब्रशों B1 व B2 से संपर्कित रहती है और दोनों ब्रशों को गैल्वेनोमीटर से संपर्कित कर दिया जाता है ।
जब धुरी को बाहरी यांत्रिक कार्य की सहायता से घुमाया जाता है तो कुंडली की AB भुजा ऊपर की ओर के व CD भुजा नीचे की ओर के चुंबकीय क्षेत्र को काटती हुई गति करती है । फ्लेमिंग के दक्षिण- हस्त नियम की सहायता से दोनों भुजाओं में धारा की दिशा ज्ञात की जा सकती है । अतः धारा ABCD दिशा में प्रवाहित होगी ।
अर्धघूर्णन के पश्चात AB भुजा नीचे की ओर तथा CD भुजा ऊपर की ओर गति करेगी, जिससे कुंडली में प्रवाहित होने वाली धारा की दिशा परिवर्तित होकर DCBA के अनुदिश हो जाती है ।
अतः इस प्रकार प्रत्येक आधे घूर्णन के पश्चात विद्युत धारा की दिशा क्रमिक(लगातार) बदलती रहती है । और यह धारा गैल्वेनोमीटर में विक्षेप उत्पन्न करती है ।
यदि कुंडली में फेरों की संख्या बढ़ा दी जाए है तो शक्तिशाली विद्युत धारा उत्पन्न की जा सकती है ।
ऐसी विद्युत धारा जो अपनी दिशा समय के साथ परिवर्तन कर लेती है ,उसे प्रत्यावर्ती धारा (ac) कहते है । जो युक्ति इस धारा को उत्पन्न करती है उसे प्रत्यावर्ती जनित्र( ac जनित्र) कहते है ।

⦁ वैद्युत चुंबकीय प्रेरण- वह प्रक्रम जिसके द्वारा किसी चालक के परिवर्तित चुंबकीय क्षेत्र के कारण अन्य चालक में विद्युत धारा प्रेरित होती है , उसे वैद्युत चुंबकीय प्रेरण कहते है ।

अथवा

⦁ घरेलु विद्युत परिपथ –
हम अपने घरों में विद्युत ऊर्जा की आपूर्ति मुख्य तारों (जिसे मेंस भी कहते है ।) से प्राप्त करते है । घरों में विद्युत ऊर्जा आपूर्ति के इस परिपथ को ही घरेलु विद्युत परिपथ कहते है ।

घरेलु विद्युत परिपथ में तीन प्रकार के तार काम आते है –
1. विद्युतन्मय तार (धनात्मक तार)- इस तार पर लाल रंग का विद्युतरोधी आवरण होता है ।
2. उदासीन तार(ऋणात्मक तार) – इस तार पर काले रंग का विद्युतरोधी आवरण होता है ।
3. भूसंपर्कित तार – इस तार पर हरे रंग का विद्युतरोधी आवरण होता है । इस तार को घर के निकट भूमि के भीतर बहुत गहराई पर स्थित धातु की प्लेट से संयोजित करते है । इस तार का उपयोग विशेषकर विद्युत इस्त्री ,टोस्टर, मेज पंखा ,रेफ्रिजरेटर आदि की सुरक्षा के उपाय के रूप में किया जाता है ।



क्लास-10 अध्याय -12 विद्युत (electricity) # class 10 ncert science chapter-12 part-1

 

क्लास-10 अध्याय -12 विद्युत (electricity)



  • विद्युत अवयव और उनके प्रतीक

⦁ विद्युत परिपथ-
किसी विद्युत धारा के सतत तथा बंद पथ को विद्युत परिपथ कहते है ।

⦁ विद्युत धारा-
विद्युत आवेश के प्रवाह की दर को विद्युत धारा कहते है । इसे I से व्यक्त करते है । इसका मात्रक एम्पियर होता है ,जो आंद्रे-मेरी एम्पियर नामक वैज्ञानिक के सम्मान में रखा गया है ।

अथवा
एकांक समय(इकाई समय) में प्रवाहित आवेश की मात्रा को विद्युत धारा कहतेहै ।
 धनावेश के प्रवाह की दिशा को विद्युत धारा की दिशा माना जाता है ।
 एक कूलॉम (C) आवेश लगभग 6 ×1018 इलेक्ट्रोनों में समाए आवेश के तुल्य होता है । और एक इलेक्ट्रोन पर आवेश 1.6× 10-19 C होता है ।
एक कूलॉम = 6 ×1018 ×1.6 10-19 C
= 6 ×1.6 ×10-1
= 9.6× 10-1
= 0.96 C
⦁ एमीटर –

विद्युत धारा मापने के लिए जिस यंत्र का उपयोग किया जाता है ,उसे एमीटर कहते है । इसे सदैव परिपथ में श्रेणीक्रम में लगाते है ।
⦁ Q. किसी विद्युत बल्ब के तंतु में से 0.5 A विद्युत धारा 10 मिनिट तक प्रवाहित होती है । विद्युत परिपथ से प्रवाहित विद्युत आवेश का परिमाण ज्ञात किजिए ?
Ans. दिया है –
विद्युत धारा = 0.5 A
समय = 10 मिनिट
         = 60 ×10 = 600 सैकंण्ड

⦁ विद्युत धारा के मात्रक के परिभाषा –
जब किसी विद्युत परिपथ मे एक कूलॉम(C) आवेश एक सैकण्ड(Sec.) तक प्रवाहित होता है तो उसमें बहने वाली धारा का मान एक एम्पीयर(A) होता है ।

⦁ विद्युत विभवांतर-
एकांक आवेश( Q) को विद्युत परिपथ में एक बिन्दू से दूसरे बिन्दू तक ले जाने में किया गया कार्य(W) विद्युत विभवांतर के बराबर होता है ।

अथवा
दो आवेशित चालकों के विद्युत विभवों के अन्तर को विद्युत विभवांतर कहते है ।

⦁ विद्युत विभव-
एकांक आवेश को अनन्त से विद्युत परिपथ या विद्युत क्षेत्र में किसी बिन्दू तक लाने में किया गया कार्य विद्युत विभव के बराबर होता है ।

a. विद्युत विभव या विद्युत विभवांतर का SI मात्रक वोल्ट होता है जिसे V से लिखते है ।
b. कार्य का SI मात्रक जूल होता है जिसे J से लिखते है ।
c. आवेश का SI मात्रक कूलॉम होता है जिसे C से लिखते है ।

⦁ वोल्टमीटर-
विद्युत परिपथ में विभव या विभवांतर मापने के लिए जिस यंत्र या उपकरण का उपयोग किया जाता है उसे वोल्टमीटर कहते है । वोल्टमीटर को सदैव उन बिन्दूओं से समांतर क्रम में संयोजित करते है जिनके बीच विभवांतर मापना है ।

Q. 12 V विभवांतर के दो बिन्दूओं के बीच 2 C आवेश को ले जाने में किया गया कार्य ज्ञात करें ।
Ans. दिया है- विभवांतर = 12 V
                       आवेश = 2 C


 ओम का नियम-
यदि भौतिक अवस्थाओं जैसे ताप , दाब, आयतन आदि को नियत रखा जाए तो विद्युत परिपथ में धातु के तार के दो सिरों के बीच विभवांतर उसमें प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा के समानुपाती होता है । इसे ही ओम का नियम कहते है । इस नियम को भौतिकविज्ञानी जार्ज साईमन ओम ने दिया था ।

⦁ प्रतिरोध के मात्रक की परिभाषा-
यदि किसी चालक अथवा धातु के तार के दोनों सिरों के बीच विभवांतर 1V है तथा उससे प्रवाहित विद्युत धारा का मान 1A है तो उस चालक का प्रतिरोध 1 Ω होगा ।

⦁ परिवर्ती प्रतिरोध या धारा नियंत्रक-
विद्युत परिपथ में प्रतिरोध को परिवर्तित करने के लिए एक अवयव अथवा युक्ति का उपयोग किया जाता है , जिसे परिवर्ती प्रतिरोध कहते है ।
परिवर्ती प्रतिरोध के द्वारा विद्युत परिपथ में विद्युत स्रोत (बैट्री) की वोल्टता बदले बिना ही धारा का नियंत्रण किया जा सकता है ,अतः इसे धारा नियंत्रक भी कहते है ।

Q. (a)यदि किसी विद्युत बल्ब के तंतु का प्रतिरोध 1200 Ω है तो यह 220 V स्रोत से कितनी विद्युत धारा लेगा ?(b) यदि किसी विद्युत हीटर की कुंडली का प्रतिरोध 100 Ω है तो यह विद्युत हीटर 220 V स्रोत से कितनी धारा लेगा ?
Ans.

Q. जब कोई विद्युत हीटर विद्युत स्रोत से 4 A विद्युत धारा लेता है तब उसके टर्मिनलों (सिरों) के बीच विभवांतर 60 V है । उस समय विद्युत हीटर कितनी विद्युत धारा लेगा जब विभवांतर को 120 V तक बढ़ा दिया जाए ।
Ans.

⦁ चालक पदार्थ के प्रतिरोध की निर्भरता-
चालक पदार्थ का प्रतिरोध(R) निम्न बातों पर निर्भर करता है –
1. चालक पदार्थ की लंबाई (l)के समानुपाती होता है ।
2. चालक पदार्थ की अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल(A) के व्युत्क्रमानुपाती होता है ।
3. चालक पदार्थ की प्रकृति पर निर्भर करता है ।

Q. किसी धातु के 1 मीटर लंबे तार का 20 C पर वैद्युत प्रतिरोध 26 Ω है । यदि तार का व्यास 0.3 mm है , तो इस धातु के तार की वैद्युत प्रतिरोधकता ज्ञात करें ।
Ans.

Q. दिए गए पदार्थ के किसी l लंबाई तथा A मोटाई के तार का प्रतिरोध 4 Ω है । इसी पदार्थ के किसी अन्य तार का प्रतिरोध क्या होगा जिसकी लंबाई l/2 तथा मोटाई 2A है ?
Ans.


 कुछ महत्वपूर्ण बिन्दू-
1. किसी पदार्थ का प्रतिरोध तथा प्रतिरोधकता ताप परिवर्तन के साथ परिवर्तित हो जाते है ।
2. धातु तथा मिश्रधातुओं के लिए प्रतिरोधकता अत्यंत कम 10-8 से 10-6 Ωm तथा विद्युतरोधी पदार्थ ( रबड़, काँच ) के लिए बहुत उच्च 1012 से 1017 Ωm कोटी की होती है ।
3. विद्युत बल्बों के तंतुओं के निर्माण में एकमात्र धातु टंगस्टन (W) का ही उपयोग किया जाता है । जबकी कॉपर(Cu) तथा एल्युमिनियम(Al) उपयोग विद्युत संचरण के लिए उपयोग होने वाले तारों के निर्माण में किया जाता है ।
⦁ प्रतिरोधों का संयोजन- यह निम्न प्रकार का होता है ।
श्रेणीक्रम संयोजन –
जब प्रतिरोधों का एक सिरा दूसरे सिरे से मिलाकर जोड़ा जाता है तो इसे श्रेणीक्रम संयोजन कहते है । श्रेणीक्रम संयोजन में प्रत्येक प्रतिरोध में समान धारा प्रवाहित होती है ,परंतु प्रत्येक प्रतिरोध के सिरों पर विभवांतर भिन्न-भिन्न होता है ।

Veq = V1 + V2 + V3                                       ( V = I R )
I Req = I R1 + I R2 + I R3
I Req = I ( R1 + R2 + R3 )
Req = R1 + R2 + R3

Q. एक विद्युत लैम्प जिसका प्रतिरोध 20 Ω है , तथा एक 4 Ω प्रतिरोध का चालक 6 V बैट्री से श्रेणीक्रम में जुड़े है । a. परिपथ का कुल प्रतिरोध , b. परिपथ में प्रवाहित धारा तथा c. विद्युत लैम्प व चालक के सिरों के बीच विभवांतर परिकलित कीजिए ।
Ans.

a. परिपथ का कुल प्रतिरोध
Req = R1 + R2
Req = 4 + 20
Req = 24 Ω

b. Veq = I Req

C. चालक के सिरों पर विभवांतर
V1 = I R1

Q. किसी विद्युत परिपथ का व्यवस्था आरेख खींचिए जिसमें 2 V के तीन सेलों की बैट्री , एक 5 Ω प्रतिरोधक, एक 8 Ω प्रतिरोधक ,एक 12 Ω प्रतिरोधक तथा एक प्लग कुंजी सभी श्रेणीक्रम में संयोजित है । साथ ही कुल प्रतिरोध , परिपथ में प्रवाहित धारा तथा प्रत्येक प्रतिरोध के सिरों पर विभवांतर ज्ञात करो ।
Ans.

कुल प्रतिरोध Req = R1 + R2 + R3 
Req = 5 + 8 + 12
Req = 25 Ω

परिपथ में प्रवाहित कुल धारा 

विद्युत परिपथ में प्रतिरोधों के सिरों पर विभवांतर

समांतर क्रम संयोजन (पार्श्व क्रम संयोजन) –
जब प्रतिरोधों को समांतर क्रम या पार्श्व क्रम में संयोजित करते है तो इसे समांतर क्रम संयोजन (पार्श्व क्रम संयोजन) कहते है । समांतर क्रम संयोजन में प्रत्येक प्रतिरोध के सिरों पर विभवांतर समान होता है परन्तु उनमें धारा भिन्न-भिन्न होती है ।



जब दो प्रतिरोध समांतर क्रम में जुड़े हो तो कुल प्रतिरोध का सूत्र

Q. प्रतिरोधकों R1 , R2 तथा R3 जिनके मान क्रमशः 5 Ω ,10 Ω तथा 30 Ω है , इन्हें समान्तर क्रम में 12 V की बैट्री से जोड़ा गया है । a. प्रत्येक प्रतिरोध से प्रवाहित धारा b. परिपथ में प्रवाहित कुल विद्युत धारा c. परिपथ का कुल प्रतिरोध ज्ञात कीजिए ।
Ans.

a. प्रत्येक प्रतिरोध से प्रवाहित धारा
प्रथम प्रतिरोध(R1) से प्रवाहित धारा

b. परिपथ में प्रवाहित कुल विद्युत धारा
Ieq = I1 + I2 + I3
Ieq = 2.4 + 1.2 + 0.4
Ieq = 4 A
c. परिपथ का कुल प्रतिरोध

Q.


उपरोक्त चित्र के आधार पर परिपथ का कुल प्रतिरोध तथा परिपथ में प्रवाहित कुल विद्युत धारा ज्ञात कीजिए ।
Ans.

परिपथ का कुल प्रतिरोध

अथवा


⦁ महत्वपूर्ण बिन्दू
a. श्रेणीबद्ध परिपथ से एक प्रमुख होनि यह होती है कि जब परिपथ का एक अवयव कार्य करना बंद कर देता है तो परिपथ टूट जाता है और परिपथ का अन्य कोई अवयव कार्य नहीं कर पाता है ।
इसके विपरीत यदि समांतर क्रम संयोजन में कोई अवयव खराब होता है तो अन्य अवयव पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है और अन्य अवयव समान रूप से कार्य करते रहते है ।

b.प्रतिरोधों का जब श्रेणीक्रम संयोजन करते हैं तो कुल प्रतिरोध बढ़ता है और जब समांतर क्रम संयोजन करते है तो प्रतिरोध घटता है ।


जूल का नियम या जूल का उष्मीय प्रभाव या विद्युत धारा का तापीय प्रभाव –
जूल के अनुसार किसी विद्युत परिपथ में यदि R प्रतिरोध में I धारा को t समय के लिए प्रवाहित किया जाए तो चालक तार गर्म होने लगता है अर्थात् वहाँ उष्मा उत्पन्न होने लगती है ।

जूल के अनुसार उत्पन्न उष्मा H निम्न कारकों पर निर्भर करती है ।

उष्मा का मात्रक जूल या कैलोरी होता है । उष्मा का SI मात्रक जूल होता है जिसे J से लिखते है ।

Q. किसी 4 Ω प्रतिरोधक से प्रति सैंकण्ड 5 A की धारा प्रवाहित हो रही है तो प्रतिरोधक से उत्पन्न उष्मा की गणना करे ।
Ans. दिया है –
R = 4 Ω
I = 5 A
t = 1 Sec.
H = I2 R t
H = (5)2 ×4 ×1
H = 25× 4 ×1
H= 100 J
Q. किसी 8 Ω प्रतिरोधक से प्रति सैंकण्ड 200 J उष्मा उत्पन्न हो रही है । प्रतिरोध के सिरों पर उत्पन्न विभवांतर ज्ञात कीजिए ।
Ans. दिया है –
R = 8 Ω
H = 200 J
t = 1 Sec.

विभवांतर ( V ) = I R
V = 5 ×8
V = 40 volt

⦁ विद्युत धारा के तापीय प्रभाव या जूल के नियम के व्यावहारिक अनुप्रयोग (उपयोग)
1. विद्युत इस्तरी , विद्युत टोस्टर, विद्युत तंदूर ,विद्युत केतली तथा विद्युत हीटर आदि विद्युत धारा के तापीय प्रभाव पर आधारित है ।
2. विद्युत तापीय प्रभाव का उपयोग प्रकाश उत्पन्न करने में किया जाता है । जैसे बल्बों से प्रकाश उत्पन्न करना । बल्ब के तंतुओं को बनाने के लिए टंगस्टन ( गलनांक 3380 डिग्री सेल्सियस) धातु का प्रयोग करते है । बल्बों में रासायनिक दृष्टि से अक्रिय नाइट्रोजन तथा ऑर्गन गैस भरी जाती है जिससे उसके तंतु की आयु में वृद्धि हो जाती है ।
3. विद्युत परिपथों में उपयोग होने वाले फ्यूज भी तापीय प्रभाव पर आधारित होते है । निम्न गलनांक वाली धातुओं का उपयोग फ्यूज बनाने में किया जाता है । इसे विद्युत परिपथ में श्रेणीक्रम में संयोजित करते है । यदि विद्युत परिपथ में धारा का मान अधिक होता है तो फ्यूज पिघल जाता है और धारा परिपथ में प्रवाहित होना बंद हो जाती है जिससे विद्युत उपकरण खराब होने से बच जाते है ।



⦁ विद्युत शक्ति-
किसी विद्युत परिपथ में सेल द्वारा R प्रतिरोध में I धारा को निरन्तर प्रवाहित करने में किए गए कार्य की दर को विद्युत शक्ति कहते है । इसे P से प्रदर्शित करते है ।
अथवा
कार्य करने की दर को शक्ति कहते है ।

शक्ति का SI मात्रक ‘ वॉट(Watt) ‘ होता है । जिसे हम W से लिखते है ।
वॉट शक्ति का छोटा मात्रक होता है अतः हम वास्तविक व्यवहार में हम शक्ति के काफी बड़े मात्रक किलोवॉट (KW) का उपयोग करते है ।
1KW = 1000 Watt
⦁ मात्रक वॉट की परिभाषा –
जब किसी युक्ति में 1 A धारा 1 Volt पर प्रवाहित की जाती है तो युक्ति की शक्ति 1 वॉट होती है ।
P = V I
P = 1× 1
P = 1 Watt
⦁ विद्युत ऊर्जा-
शक्ति तथा समय के गुणनफल को विद्युत ऊर्जा कहते है ।
विद्युत ऊर्जा = शक्ति(P) ×समय(t)
इसका मात्रक W h (वॉट घंटा) होता है । इसका व्यापारिक मात्रक किलोवॉट घंटा (KWh) होता है जिसे सामान्य बोलचाल में ‘ यूनिट ‘ भी कहते है ।
1 यूनिट = 1 KWh
         = 1000 W ×3600 सैंकण्ड
1 यूनिट = 3.6 ×106 J
विद्युत ऊर्जा का SI मात्रक जूल होता है जिसे J से लिखते है ।
Q. कोई विद्युत बल्ब 220 V के जनित्र से संयोजित है । यदि बल्ब से 0.5 A विद्युत धारा प्रवाहित होती है तो बल्ब की शक्ति क्या है ।
Ans. दिया है –
विभवांतर(V) = 220 Volt
विद्युत धारा (I) = 0.5 A
विद्युत शकित (P) = V I
                P = 220 ×0.5
                 P = 110 W

Q. एक घर में 400 W का रेफ्रीजरेटर ,200 W की टी.वी. , 150 W का पंखा और 50 W का बल्ब लगा है । ये सभी उपकरण प्रतिदिन 8 घंटे चलते है । 3.00 रूपये प्रति KWh(यूनिट) की दर से इन्हें 30 दिन तक चलाने के लिए विद्युत ऊर्जा का मूल्य क्या है ।
Ans. कुल विद्युत शक्ति (P) = 400 W + 200 W + 150 W + 50 W
                                  P = 800 W
                                   P = 0.800 K W (किलोवॉट)
कुल समय (t)= 8× 30 = 240 घंटे

विद्युत ऊर्जा = P ×t
                  = 0.800 ×240 KWh
                 = 192 KWh (192 यूनिट)
विद्युत ऊर्जा का मूल्य
एक यूनिट का मूल्य = 3 रूपये
192 यूनिट का मूल्य = 3 ×192 = 576 रूपये

Q. कोई विद्युत मोटर 220 V के विद्युत स्रोत से 5 A विद्युत धारा लेता है । मोटर की शक्ति निर्धारित कीजिए तथा 2 घंटे में मोटर द्वारा उपभुक्त ऊर्जा परिकलित कीजिए ।
Ans. दिया है
विभवांतर (V) = 220 Volt
विद्युत धारा (I) = 5 A
समय = 2 घंटे
विद्युत शक्ति (P) = V ×I
P = 220× 5
P = 1100 W
P = 1.100 KW
विद्युत ऊर्जा = P× t
                   = 1.100× 2
                  = 2.200 KWh
                   = 2.2 KWh ( 2.2 यूनिट)

क्लास-10 अध्याय-13 विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव

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