Pages

Friday, 5 November 2021

पाठ - 11 मानव नेत्र और रंग बिरंगा संसार

 



M.D.M PUBLIC SCHOOL JANI KHURD
HOME ASSIGNMENT
SESSION – 2020 – 2021
CLASS – 10th

SUBJECT – PHYSICS
SUBJECT  TEACHER - RAJ KUMAR SIR

पाठ - 11     मानव नेत्र और रंग बिरंगा संसार 
 मानव नेत्र और रंग बिरंगा संसार 

मानव नेत्र :- मानव नेत्र एक अत्यंत मूल्यवान एवं सुग्राही ज्ञानेंद्री है | यह हमें हमारे चारो ओर के रंगो को देखने योग्य बनाती है इसके कुछ मुख्य भाग निम्न है - 



मानव नेत्र की संरचना (Structure of the human eye) :- 

नेत्र की संरचना एक गोले के आकार की होती है। किसी वस्तु से आती हुई प्रकाश की किरण हमारी आँखों में आँखों के लेंस के द्वारा प्रवेश करती है तथा रेटिना पर प्रतिबिम्ब बनाती है। दृष्टि पटल (रेटिना (Retina)) एक तरह का प्रकाश संवेदी पर्दा होता है, जो कि आँखों के पृष्ट भाग में होता है। दृष्टि पटल (रेटिना (Retina)) प्रकाश सुग्राही कोशिकाओं द्वारा, प्रकाश तरंगो के संकेतों को मस्तिष्क को भेजता है, और हम संबंधित वस्तु को देखने में सक्षम हो पाते हैं। कुल मिलाकर आँखों द्वारा किसी भी वस्तु को देखा जाना एक जटिल प्रक्रिया है।





नेत्र गोलक (Eye Ball) :-

पूरा नेत्र, नेत्र गोलक कहलाता है। मानव नेत्र गोलक का आकार एक गोले के समान होता है। नेत्र गोलक का ब्यास लगभग 2.3 cm के बराबर होता है। नेत्र गोलक कई भागों में बँटा रहता है।



स्वच्छ मंडल या कॉर्निया (Cornea) :-

स्वच्छ मंडल या कॉर्निया (Cornea) एक पारदर्शी पतली झिल्ली होती है, तथा यह नेत्र गोलक के अग्र पृष्ट पर एक पारदर्शी उभार बनाती है। किसी भी वस्तु से आती प्रकाश की किरण स्वच्छ मंडल या कॉर्निया (Cornea) होकर ही आँखों में प्रवेश करती है। स्वच्छ मंडल या कॉर्निया (Cornea) आँखों की पुतली (pupil), परितारिका (Iris) तथा नेत्रोद (aqueous humor) को ढ़कता है। स्वच्छ मंडल या कॉर्निया (Cornea) का पारदर्शी होना बहुत ही महत्वपूर्ण तथा मुख्य गुण है। स्वच्छ मंडल या कॉर्निया (Cornea) में रक्त वाहिका नहीं होती है। स्वच्छ मंडल या कॉर्निया (Cornea) को बाहर से अश्रु द्रव के विसरण द्वारा तथा भीतर से नेत्रोद (aqueous humor) के विसरण से पोषण मिलता है।
नेत्र में प्रवेश करने वाली प्रकाश की किरणों का अधिकांश अपवर्तन स्वच्छ मंडल [कॉर्निया (Cornea)] के बाहरी पृष्ठ पर होता है।

परितारिका (Iris) :-

परितारिका (Iris) एक पतला, गोलाकार तथा गहरे रंग का पेशीय डायफ्राम होता है, जो स्वच्छ मंडल [कॉर्निया (Cornea)] के पीछे रहता है। परितारिका (Iris) पुतली के आकार (size) को नियंत्रित करता है ताकि रेटिना तक प्रकाश की आवश्यक एवं सही मात्रा पहुँच सके। परितारिका (Iris) के रंगों के द्वारा ही किसी व्यक्ति की आँखों का विशेष रंग होता है या निर्धारित होता है।

पुतली (Pupil) :-

परितारिका (Iris) के बीच में एक गोल छेद के जैसा होता है, जिसे पुतली (Pupil) कहते हैं। पुतली (Pupil) आँखों में प्रवेश करने वाली प्रकाश की किरणों को नियंत्रित करता है, ताकि प्रकास की सही मात्रा रेटिना (दृष्टिपटल) तक पहुँच सके। मनुष्य की पुतली गोलाकार होती है।



अभिनेत्र लेंस या लेंस या क्रिस्टलीय लेंस (Lens or Crystalline Lens) :-

आँखों का लेंस (अभिनेत्र लेंस) अन्य लेंसों की तरह का ही होता है। आँखों में पारदर्शी द्वि–उत्तल लेंस होता है, जो रेशेदार अवलेह (fibrous jelly) जैसे पदार्थ से बना होता है। अभिनेत्र लेंस परितारिका (Iris) के ठीक नीचे अवस्थित होता है। अभिनेत्र लेंस किसी भी वस्तु से आती हुई प्रकाश की किरणों को अपवर्तित कर उसका उलटा तथा वास्तविक प्रतिबिम्ब रेटिना (दृष्टिपटल) पर बनाता है।

दृष्टिपटल (Retina) :-

दृष्टिपटल (Retina) आँखों के पिछ्ले भाग में होता है, या आँखों के अंदर के पिछ्ले भाग को दृष्टिपटल (Retina) कहते हैं। दृष्टिपटल (Retina) एक सूक्ष्म झिल्ली होती है, जिसमें बृहत संख्यां में प्रकाश सुग्राही कोशिकाएँ (Light sensitive cells) होती हैं। ये प्रकाश सुग्राही कोशिकाएँ (Light sensitive cells) बिद्युत सिग्नल उत्पन्न करती हैं। किसी वस्तु से आती हुई प्रकाश की किरणें अभिनेत्र लेंस द्वारा अपवर्तन के पश्चात रेटिना पर प्रतिबिम्ब बनाता है। दृष्टिपटल (Retina) पर प्रतिबिम्ब बनते ही उसमें वर्तमान प्रकाश सुग्राही कोशिकाएँ (Light sensitive cells) प्रदीप्त होकर सक्रिय हो जाती हैं तथा विद्युत संकेतों को उत्पन्न करती हैं। ये विद्युत संकेत दृक तंत्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क तक पहुँचा दिये जाते हैं। मस्तिष्क इन संकेतों की व्याख्या करता है तथा अंतत: इस सूचना को संसाधित करता है जिससे कि हम किसी वस्तु को जैसा है, वैसा ही देख पाते हैं।

समंजन क्षमता :- किसी आँख की वह क्षमता जिसकी वजह से आंख स्वत: अपनी फोकस दूरी को कम या ज्यादा कर सके नेत्र की समंजन क्षमता कहलाती है | 
जैसे :- यदि सूर्य के तेज उजाले में रहते है तो हमारी आँखे छोटी हो जाती है यदि हम अँधेरे मे रहते है तो हमारी आँख स्वत: बड़ी हो जाती है | 

सुस्पष्ट दर्शन की अल्पतम दूरी या नेत्र का निकट बिन्दु (Least Distance of Distinct Vision or Near Point of Eye) :-

वह न्यूनतम दूरी जिस पर रखी कोई वस्तु बिना तनाव के अत्यधिक स्पष्ट देखी जा सकती है, उसे सुस्पष्ट दर्शन की अल्पतम दूरी या नेत्र का निकट बिन्दु कहते हैं।




किसी समान्य दृष्टि के तरूण वयस्क के लिये निकट बिन्दु की आँख से दूरी लगभग 25 cm होती है।

नेत्र का दूर– बिन्दु (Far Point of Eye) :-

वह दूरतम बिन्दु जिस तक कोई नेत्र वस्तुओं को सुस्पष्ट देख सकता है, नेत्र का दूर– बिन्दु (Far Point) कहलाता है।
सामान्य नेत्र के लिये दूर– बिन्दु (Far Point) अनंत दूरी पर होता है।

अत: एक सामान्य नेत्र 25 cm से अनंत दूरी तक रखी सभी वस्तुओं को सुस्पष्ट देख सकता है।



दृष्टि दोष तथा उनका संशोधन (Defects of Vision and their Correction) :-

कभी कभी नेत्र धीरे धीरे अपनी समंजन क्षमता खो देते हैं, जिसके कारण व्यक्ति वस्तुओं को आराम से सुस्पष्ट नहीं देख पाता है। नेत्र में अपवर्तन दोषों के कारण दृष्टि धुँधली हो जाती है, इसे नेत्र दोष कहते हैं।
अपवर्तन दोष के कारण होने वाले नेत्र दोष मुख्य रूप से तीन तरह के होते हैं। ये दोष हैं:-
(i) निकट दृष्टि दोष (Myopia)
(ii) दीर्घ दृष्टि दोष (Hypermetropia) तथा 
(iii) जरा दूरदृष्टिता (Presbyopia)

निकट दृष्टि दोष या निकटदृष्टिता (Myopia or Near Sightedness or Short Sightedness) :- इस दोष से पीड़ित व्यक्ति को पास की वस्तुए तो स्पष्ट (ठीक) दिखाई देती है परन्तु दूर की वस्तु स्पष्ट दिखाई नहीं देती | अर्थात नेत्र का दूर बिंदु अनंत पर न होकर कम दूरी पर आ जाता है | 




निकट दृष्टि दोष या निकटदृष्टिता का कारण (Cause of Myopia or Near Sightedness or Short Sightedness) :-

(a)अभिनेत्र लेंस की वक्रता का अत्यधिक हो जाना या
(b) नेत्र गोलक का लम्बा हो जाना
अभिनेत्र लेंस की वक्रता का अत्यधिक हो जाने या नेत्र गोलक के लम्बा हो जाने के कारण निकट दृष्टि दोष से युक्त व्यक्ति का दूर बिन्दु अनंत पर न होकर नेत्र के पास आ जाता है। जिससे वस्तु का स्पष्ट प्रतिबिम्ब रेटिना पर बन जाता है | 

निकट दृष्टि दोष या निकटदृष्टिता का निवारण  (Correction of Mypoia Near Sightedness or Short Sightedness) :-

निकट दृष्टि दोष या निकटदृष्टिता के निवारण मे फोकस दुरी के अवतल लेंस के चश्मे का प्रयोग किया जाता है। जिससे दूर रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना पर बन जाता है | 




दीर्घ–दृष्टि दोष या दूर–दृष्टिता (Hypermetropia or Far Sightedness) :- इस दोष से पीड़ित व्यक्ति को दूर की वस्तुए तो स्पष्ट दिखाई देती है जबकि पास की वस्तुए स्पष्ट दिखाई नहीं देती | 



दीर्घ–दृष्टि दोष या दूर–दृष्टिता का कारण (Cause of Hypermetropia or Far Sightedness) ;-

(a)अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी का अत्यधिक हो जाना अथवा
(b)नेत्र गोलक का छोटा हो जाना
अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी का अत्यधिक हो जाने अथवा नेत्र गोलक के छोटा हो जाने के कारण दीर्घ–दृष्टि दोष या दूर–दृष्टिता से युक्त व्यक्ति का निकट बिन्दु सामान्य निकट बिन्दु (25 cm) से दूर हट जाती है। इसके कारण वस्तु से आने वाली प्रकाश किरणें दृष्टिपटल के पीछे फोकसित होती है, तथा वस्तु का प्रतिबिम्ब दृष्टिपटल पर नहीं बनकर उससे थोड़ा पीछे बनता है। 

दीर्घ–दृष्टि दोष या दूर–दृष्टिता का निवारण (Correction of Hypermetropia or Far Sightedness) :-

इस दोष के निवारण मे उचित फोकस दुरी के (अभिसारी लेंस) उत्तल लेंस(Convex lens) का उपयोग किया जाता है। उत्तल लेंस [अभिसारी लेंस (Convex lens)] नजदीक रखी वस्तु से आती प्रकाश की किरणों को अभिसरित कर (थोड़ा अंदर की ओर झुका कर) वस्तु का प्रतिबिम्ब सही जगह अर्थात दृष्टिपटल पर बनाता है, तथा इस दोष से पीड़ित व्यक्ति नजदीक रखे वस्तुओं को सुस्पष्ट देख पाता है।


जरा–दूरदृष्टिता (Presbyopia) :-

आयु में वृद्धि के साथ नेत्र की समंजन क्षमता घटने से व्यक्ति को निकट व पास की या दोनों ही स्थानों की वस्तु स्पष्ट दिखाई नहीं देती | ऐसे जरा–दूरदृष्टिता (Presbyopia) कहते हैं। आयु में वृद्धि होने के साथ साथ मानव नेत्र की समंजन क्षमता भी घट जाती है, तथा अधिक उम्र के व्यक्ति पास रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख पाते।




जरा–दूरदृष्टिता का कारण (Cause of Presbyopia) :-

पक्ष्माभी पेशियों (Ciliary muscles) का धीरे धीरे दुर्बल हो जाने के कारण व लेंस के लचीलेपन की वजह से जरा–दूरदृष्टिता (Presbyopia) उत्पन्न हो जाता है। 

जरा–दूरदृष्टिता का संशोधन (Correction of the eye defect of Presbyopia) :-

जरा दूर दृष्टि दोष का निवारण करने के लिए द्विफोकसी लेंसों का उपयोग किया जाता है | द्विफोकस लेंस मे उत्तल व अवतल लेंस दोनों होते है | 

 प्रिज्म (Prism) 


प्रिज्म किसी समांग पारदर्शी माध्यम की उस आकृति को कहते है जो किसी कोण पर झुके हुए दो समतल पृष्ठों से घिरा होता है | 








प्रिज्म कोण :- प्रिज्म के दो पार्शव फलको के बीच बने कोण को प्रिज्म कोण कहते है | 



विचलन कोण :- आपतित किरण व निर्गत किरण के बिच बने कोण को विचलन कोण कहते है | 



चित्र मे ∠HGM विचलन कोण है |

प्रिज्म सूत्र :- 

A = प्रिज्म कोण 
Dm = विचलन कोण
n = माध्यम का अपवर्तनांक  

अल्पतम विचलन की स्थिति मे :- 

Dm = (n - 1)A 

प्रिज्म द्वारा प्रकाश का वर्ण विक्षेपण :- सूर्य का प्रकाश अनेक रंगो से मिलकर बना होता है | जब सूर्य के प्रकाश पुँज को किसी प्रिज्म से गुजरा जाता है तो प्रकाश किरण अपने अवयवी रंगो मे विभाजित हो जाती है , इस प्रक्रिया को प्रकाश का वर्ण विक्षेपण कहते है |इस प्रकार उत्पन्न विभिन्न रंगो के समूह को वर्णक्रम या स्पेक्ट्रम कहते है | 







रंगो के इस समूह को अंग्रेजी के शब्द VIBGYOR  से याद किया जाता है | 

नोट :- लाल रंग के प्रकाश का विचलन सबसे कम व बैंगनी रंग का विचलन सबसे अधिक होता है | 


प्रकाश का प्रकीर्णन :- जब प्रकाश किसी ऐसे माध्यम से गुजरता है जिसमे धूल , वायु , आदि के अतिसूक्षम कण उपस्थित हो , तो उन कणो द्वारा प्रकाश का कुछ भाग सभी दिशाओ मे फ़ैल जाता है | इस घटना को प्रकाश का प्रकीर्णन कहते है | 


लार्ड रैले का नियम :- यदि माधयम के कणो का आकर प्रकाश की तरंग दैर्ध्य से अतिसूक्षम होता है , तो प्रकाश के प्रकीर्णन की मात्रा प्रकाश की तरंग दैर्ध्य (λ) की चतुर्थघात के समानुपाती होती है |


प्रकीर्णन   ∝  1 /λ4


Q 1 . खतरे का सिंग्नल लाल क्यों होता है ? 
Q 2. आकाश नीला क्यों दिखाई देता है ? 
Q 3. सूर्याउदय और सूर्यास्त के समय सूर्य लाल क्यों दिखाई देता है ? 

lesson complete

Next Chapter - CLICK HERE
Previous Chapter - Click here


CHEMISTRY FOR CLASS 9th 

पाठ-१ हमारे आस पास के पदार्थ | पदार्थ (द्रव्य) क्या है ? CLASS 9TH - CLICK HERE

पाठ - 2    क्या हमारे आस - पास के पदार्थ शुद्ध है CLASS 9TH CH 2 CLICK HERE

पाठ - 3 परमाणु और अणु                                                              - CLICK HERE


      PHYSICS FOR CLASS 9th
 

पाठ - 8 गति  CLASS 9TH                                                          - CLICK HERE

पाठ - 9 बल तथा गति के नियम                                                      - CLICK HERE

पाठ - 10 गुरुत्वाकर्षण (GRAVITY 9TH CLASS )                          - CLICK HERE

पाठ - 11 कार्य तथा ऊर्जा (work and energy)                                  - CLICK HERE

CHEMISTRY FOR CLASS 10th 

    पाठ - 1 रासायनिक अभिक्रियाएँ और समीकरण                                    -  CLICK HERE  

पाठ-2 अम्ल व क्षार ( ACID AND BASE )                                          -   CLICK HERE

पाठ - 3 धातु और अधातु                                                                       -   CLICK HERE

पाठ - 4 कार्बन व उसके यौगिक                                                             -   CLICK HERE


  • प्रकाश का परावर्तन व अपवर्तन - CLICK HERE
  •  क्या हमारे आस - पास के पदार्थ शुद्ध है - CLICK HERE
  • अम्ल व क्षार ( ACID AND BASE ) - CLICK HERE
  • रासायनिक अभिक्रियाएँ और समीकरण - CLICK HERE

No comments:

Post a Comment

क्लास-10 अध्याय-13 विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव

  क्लास-10 अध्याय-13 विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव की खोज सन् 1820 में वैज्ञानिक हैंस क्रिश्चियन ऑर्स्टेड ने...