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Friday, 5 November 2021

विद्युत धारा और प्रतिरोध

 M.D.M PUBLIC SCHOOL JANI KHURD

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SESSION – 2020 – 2021
CLASS – 10th

SUBJECT – PHYSICS
SUBJECT  TEACHER - RAJ KUMAR SIR

पाठ - 12           विद्युत धारा और प्रतिरोध 

विद्युत आवेश(Electric Charge ) :- किसी पदार्थ का वह गुण जिसके कारण उसमे विद्युत तथा चुम्बकीय प्रभाव उत्पन्न होते है , विद्युत आवेश कहलाता है | इसे q से प्रदर्शित करते है | यह एक अदिश राशि है | इसका मात्रक कूलॉम है | 



आवेश दो प्रकार के होते है - 

(1) धनात्मक आवेश (+):- किसी पदार्थ पर इलेक्ट्रोनो की कमी के कारण उत्पन्न आवेश को धनावेश कहते है | 




(2) ऋणात्मक आवेश (-) :- किसी पदार्थ पर इलेक्ट्रॉन की अधिकता के कारण उत्पन्न आवेश को ऋणावेश कहते है | 





एक इलेक्ट्रान पर आवेश (e)  =  -1.6 x 10-19 कूलॉम
एक प्रोटोन पर आवेश (p)  =  +1.6 x 10-19 कूलॉम

आवेश = इलेक्ट्रॉनों की संख्या  x एक इलेक्ट्रॉन पर आवेश  

q    =   n.e 

जहा पर   e      =   एक इलेक्ट्रॉन पर आवेश 
n   =  इलेक्ट्रॉनों की संख्या


पदार्थो के प्रकार :- 
आवेश प्रवाह  दृष्टि से पदार्थ तीन प्रकार के होते है - 

(1) चालक (Conductors) :- वे पदार्थ जिनमे आवेश का प्रवाह आसानी से होता है , चालक अथवा सुचालक कहलाते है | 
जैसे :- धातुएँ , अम्लीय जल , लवण,आदि | 




(2) अचालक (Non-Conductors):- वे पदार्थ जिनमे आवेश प्रवाह नहीं होता है , अचालक या कुचालक कहलाते है |

जैसे :- सुखी लकड़ी , काँच , रबर , आदि | 





(3) अर्द्धचालक (Semi-Conductors) :- वे पदार्थ जो सामान्य अवस्था मे आवेश का प्रवाह नहीं करते लेकिन पदार्थ का ताप बढ़ाने पर आवेश का प्रवाह करते है , अर्द्धचालक कहलाते है | 

जैसे :- सिलिकॉन (Si) ,जर्मेनियम (Ge) , आदि |  




विद्युत परिपथ :- विद्युत धारा के सतत तथा बंद पथ को विद्युत परिपथ कहते है | 







विद्युत धारा (Electric Current) :- किसी चालक मे विद्युत आवेश के प्रवाह की दर को विद्युत धारा कहते है | इसे i से प्रदर्शित करते है |

 यदि किसी चालक मे t समय मे q आवेश प्रवाहित हो तो चालक मे प्रवाहित विद्युत धारा  
विद्युत धारा  =  आवेश / समय 
i  =  q / t 

विद्युत धारा को एमीटर से मापा जाता है | इसका मात्रक एम्पियर या कूलॉम /सेकण्ड 




यदि     Q   =  1 कूलॉम          ,      t   =  1 सेकेण्ड    हो | 
जब            I   =  1 कूलॉम / सेकेण्ड   = 1 एम्पियर 

अत: यदि किसी चालक मे 1 कूलॉम आवेश 1 सेकंड तक प्रवाहित हो तो उसमे विद्युत धारा 1 एम्पियर होगी | 

विद्युत विभव (Electric Potential) :- एकांक आवेश को अनन्त से विद्युत क्षेत्र मे किसी बिंदु तक लाने मे किये गए कार्य को उस बिंदु पर विद्युत विभव कहलाता है | 


 यदि q कूलॉम आवेश को अनन्त से किसी बिंदु तक लाने किया गया या कार्य W जूल हो , तो उस बिन्दु पर कार्यरत विद्युत विभव 

V  =  W / q

विद्युत विभव का मात्रक जूल / कूलॉम या वोल्ट है | 



विद्युत विभवान्तर (Potential Difference):- किसी धारावाही विद्युत परिपथ मे एकांक आवेश को एक बिंदु से परिपथ के किसी दूसरे बिन्दु तक ले जाने मे किये गए कार्य को उस बिंदु पर विद्युत विभवान्तर कहते है | 


 यदि q कूलॉम आवेश को परिपथ मे किसी एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने मे किया गया कार्य W जूल हो , तो उस बिन्दु पर कार्यरत विद्युत विभवान्तर  

Δ V  =  W  /  q 

विद्युत विभवांतर का मात्रक जूल / कूलॉम या वोल्ट है | 
यदि     W   =  1  जूल     q   =  1 कूलॉम  तो 
V   =   1 वोल्ट 

अत: यदि किसी चालक के दो बिदुओ के बीच 1 कूलॉम आवेश प्रवाहित करने मे 1 जल कार्य होता है तो उन दोनों बिन्दुओ के बीच का विभवान्तर 1 वाल्ट होगा | 

अमीटर (धारामापी) :- एम्पियर मीटर द्वारा विद्युत धारा का मापन किया जाता है | यह धारामापी की कुंडली के साथ समान्तर क्रम मे कम प्रतिरोध का तार शंट जोड़कर बनाया जाता है |  






वोल्टमीटर :- वोल्टमीटर विभवान्तर मापने के काम मे आता है , यह धारामापी की कुंडली के साथ श्रेणीक्रम मे उच्च प्रतिरोध का तार जोड़कर बनाया जाता है |  






जैसे :-  इस परिपथ मे अमीटर और वोल्ट्मीटर जोड़ा गया है | 



विद्युत परिपथ आरेख :- 



ओम का नियम :- इस नियम के अनुसार " यदि किसी चालक की भौतिक अवस्थाएँ ( ताप , दाब , लम्बाई ) न बदली जाए , तो उसके सिरों ले बीच विभवान्तर उसमे प्रवाहित धारा के अनुक्रमानुपाती होता है | 

यदि किसी चालक के सिरों के बीच विभवान्तर V वोल्ट हो और उस चालक में प्रवाहित धारा I हो तो ओम के नियम से 



V   ∝   I 
V   =   I R 

जहॉ R एक नियतांक है जिसे तार का विद्युत प्रतिरोध कहते है | 

R  =  V / I
विद्युत प्रतिरोध R का मान चालक के आकर , पदार्थ तथा उसके ताप अपर निर्भर करता है | 

वैधुत प्रतिरोध :- किसी चालक का वह गुण जो वैधुत धारा का विरोध करता है चालक का प्रतिरोध अथवा वैधुत प्रतिरोध कहलाता है | 

यदि किसी चालक में I धारा प्रवाहित होती है तथा उसके सिरों के बीच विभवान्तर V हो तो ओम के नियमनुसार 

V   ∝   I

V   =   I R 

जहाँ R चालक का प्रतिरोध है | 

R  =  V / I

प्रतिरोध का मात्रक वोल्ट / एम्पियर या ओम होता है | 


प्रतिरोधों की उपयोगिता :- 
(1) धारा नियंत्रण मे प्रतिरोधों का प्रयोग किया जाता है | 
(2) विद्युत ऊर्जा के रूपांतरण में |

प्रतिरोध को प्रभावित करने वाले कारक :- 

एक निश्चित ताप पर किसी चालक का प्रतिरोध निम्नलिखित कारको पर निर्भर करता है - 


(1) लम्बाई :- चालक का प्रतिरोध चालक की लम्बाई के समानुपाती होता है | 


R  ∝  l     
हम कह सकते है की चालक की लम्बाई बढ़ाने से चालक का प्रतिरोध उसी अनुपात में बढ़ता है | 


(2) क्षेत्रफल :- चालक के अनुप्रस्थ कांट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है | 


R  ∝  1 / A      


हम कह सकते है की चालक की अनुप्रस्थ कांट का क्षेत्रफल बढ़ने पर प्रतिरोध घट जाता है | 

(3) पदार्थ की प्रकति :- चालक का प्रतिरोध चालक की प्रकृति पर निर्भर करता है | भिन्न - भिन्न पदार्थो का प्रतिरोध भिन्न - भिन्न होता है | 

(4) ताप :- किसी भी चालक तार का प्रतिरोध , ताप के अनुक्रमानुपाती होता है | अर्थात किसी चालक का ताप बढ़ाने पर चालक का प्रतिरोध बढ़ता है | 

विशिष्ट प्रतिरोध :- किसी चालक का प्रतिरोध चालक की लम्बाई व अनुप्रस्थ कांट के क्षेत्रफल पर निर्भर करता है | 

(1) चालक का प्रतिरोध चालक की लम्बाई के समानुपाती होता है | 

R  ∝  l      ----- (1)

(2) चालक के अनुप्रस्थ कांट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है | 

R  ∝  1 / A      --------(2)

समी o  (1) व (2) से 

R  ∝  l  / A 

R  =  ρ l  / A 

जहाँ ρ ( रो ) एक नियतांक है तथा इसका मान चालक के पदार्थ निर्भर करता है | इसे चालक के पदार्थ का विशिष्ट प्रतिरोध कहते है | 

ρ  = RA / 

यदि   A =  1 मी2    तथा     l = 1 मी   हो , 

ρ  = R

अत: किसी चालक का विशिष्ट प्रतिरोध उस चालक के प्रतिरोध के बराबर होगा जिस चालक की लम्बाई 1 मी तथा अनुप्राथ कांट का क्षेत्रफल के मी2 बराबर हो | 

प्रतिरोधों का संयोजन :- प्रायोगिक रूप से प्रतिरोधों का संयोजन निम्नलिखित दो प्रकार का होता है - 



(1) श्रेणीक्रम संयोजन :- श्रेणीक्रम संयोजन में प्रतिरोधों को इस प्रकर जोड़ा जाता है कि प्रत्येक प्रतिरोध का दूसरा सिरा अगले वाले प्रतिरोध के पहले सिरे से जुड़ा हो | इस प्रकार के संयोजन में सभी प्रतिरोधो में एकसमान धारा प्रवाहित होती है |


 

माना तीन प्रतिरोध R1,R2  R3 परिपथ मे श्रेणीक्रम मे लगे है | तब इनके सिरों के बीच विभवान्तर V1 , V2  V3 है तथा प्रतिरोधों मे धारा I प्रवाहित है | 
ओम के नियम से 

V1 = IR1    -------   (1)

V2 = IR2    --------  (2)

V3 = IR3   ------     (3)


माना परिपथ मे लगी बैटरी का विभवान्तर V है , तब 


V  = V1 + V2 + V3      -------(4)

  V  =  IR      -----  (5)

समी 4 में मान रखने पर 

IR  =  V1 + V2 + V3


IR  =  IR1 + IR2 + IR3


R  =  R1 + R2 + R3

अत: हम कह  सकते है कि श्रेणीक्रम में संयोजित प्रतिरोधों का तुल्य प्रतिरोध , उनके योग के बराबर होता है | 


(2) समान्तर क्रम संयोजन :- समान्तर क्रम संयोजन मे सभी प्रतिरोधों को इस प्रकार जोड़ा जाता है कि सभी प्रतिरोधों के पहले सिरे एक बिंदु पर व दूसरे सिरे दूसरे बिंदु पर जुड़े हो | 

इस प्रकार के संयोजन में विभवान्तर समान होता है व धाराएँ अलग - अलग होती है 





माना तीन प्रतिरोध R1,R2  R3 परिपथ में समान्तर क्रम मे लगे है | तब इनके सिरों के बीच विभवान्तर V होगा  तथा प्रतिरोधों मे धारा I1 , I2 , Iप्रवाहित है | प्रतिरोधों में यह धारा मिलकर पुन: I बनती है | तब 


I  =  I1 + I2 + I3     -------(1)

ओम के नियम से
I1   =  V / R1     --------(2)
    
I2  = V / R2      --------- (3)


I3  = V / R3      ----------(4)

समीकरणों से समीकरण (1) में मान रखने पर 


I  =  V / R1 + V / R2 + V / R3    -------(5)

यदि सम्पूर्ण परिपथ का प्रतिरोध R हो तब 

I  =  V / R

V / R  =  V / R1 + V / R2 + V / R3

1 / R  =  1 / R1 + 1 / R2 + 1 / R3


अत: हम कह सकते है कि समान्तर क्रम में संयोजित प्रतिरोधों का तुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम , उन प्रतिरोधों के व्युत्क्रमों के योग के बराबर होता है | 


विधुत ऊर्जा :- किसी चालक में विधुत आवेश प्रवाहित होने पर जो ऊर्जा खर्च होती है , वह विद्युत ऊर्जा होती है | 

यदि किसी चालक के सिरों के बीच विभवान्तर V वाल्ट हो , तो q कुलाम आवेश को चालक के एक सिरे से दूसरे सिरे तक ले जाने में किया गया कार्य या खर्च विद्युत ऊर्जा , 

W  =  V  * q    जूल 

विद्युत ऊर्जा का मात्रक जूल होता है | 

विभवान्तर व धारा के पदों में 

यदि किसी चालक में i एम्पियर की धारा t समय तक प्रवाहित है और सिरों के बीच विभवान्तर V है 
तब आवेश 
q  =  i t  रखने पर 

W = Vit   जूल 


धारा व प्रतिरोध के पदों में 

V = i R रखने पर 

W = i2Rt    जूल 

विभवान्तर व प्रतिरोधों के पदों में 

i = V / R रखने पर 


W = V2 t / R  जूल 



इलेक्ट्रॉन वोल्ट :- यदि दो बिदुओ के बीच विभवान्तर 1 वोल्ट है , तो इलेक्ट्रान को एक बिंदु से दूसरे बिन्दु तक ले जाने में किया गया कार्य 1 इलेक्ट्रॉन वोल्ट कहलाता है | यह कार्य ऊर्जा का सबसे मात्रक है | 

यदि दो बिदुओ के बीच विभवान्तर V है , तो एक इलेक्ट्रॉन को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में किया गया कार्य 

W  =  eV


विद्युत धरा का उष्मीय प्रभाव :- विद्युत धारा के प्रवाह के कारण किसी चालक के ताप में वृद्धि की घटना को विद्युत धारा का उष्मीय प्रभाव कहते है | 

 माना किसी चालक का प्रतिरोध R ओम है तथा इसके सिरों के बीच विभवान्तर V वोल्ट है | यदि चालक मे I एम्पियर की धारा t सेकेण्ड के लिए प्रवाहित की जाती है , तो चालक में खर्च विद्युत ऊर्जा 


W  =  VIt   जूल

यह ऊर्जा ही ऊष्मा के रूप में उत्पन्न होती है तथा ऊष्मा की माप कैलोरी में की जाती है | अत: 
1 कैलोरी  =  4.2    जूल 
1  जूल  =  1  / 4 .2  कैलोरी 
W जूल  = H  = W / 4. 2 कैलोरी 


H  = VIt / 4. 2 कैलोरी 


धारा व प्रतिरोध के पदों में 

V = i R रखने पर 

 H = i2Rt / 4.2    कैलोरी 

विभवान्तर व प्रतिरोधों के पदों में 

i = V / R रखने पर 


H = V2 t / 4.2R      कैलोरी 

विद्युत शक्ति :- किसी विद्युत परिपथ में विद्युत ऊर्जा के खर्च होने की दर की विद्युत शक्ति कहते है | इसे P से प्रदर्शित करते है | 


विद्युत शक्ति   =  विद्युत ऊर्जा / समय 

यदि किसी विधुत परिपथ में t सेकण्ड में W जूल ऊर्जा खर्च होती है , तो परिपथ की विद्युत शक्ति 

P  =  W / t 

इसका मात्रक जूल / सेकण्ड या वाट होता है | 


विभवान्तर व धारा के पदों में :- 

P  =  VI

धारा व प्रतिरोध के पदों में :- 

P = I2R

विभवान्तर व प्रतिरोधों के पदों में :- 

P =  V2 / R


विद्युत ऊर्जा के व्यावहारिक मात्रक :- 

किलोवाट - घंटों अथवा युनिटो की  सँख्या  = वाट x घंटे / 1000 
= वोल्ट x एम्पियर x घण्टे / 1000 
यदि दिनों की संख्या दी गयी हो तब 

किलोवाट - घंटों अथवा युनिटो की  सँख्या  = वाट x घंटे x दिन  / 1000



(1) विधुत फ्यूज :- फ्यूज एक प्रकार का मिश्रधातु या धातु तार होता है जिसका गलनांक कम होता है | फ्यूज को युक्ति के साथ श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है | 
जैसे ही धारा का मान अधिक होता है तो फ्यूज ग्राम होकर पिंघल जाता है और परिपथ टूट जाता है और परिपथ में कोई हानि नहीं होती | 

ये आप बुक से पढ़ ले | 
(2) विधुत  बल्ब :- 
(3) विद्युत ऊष्मक :- 
(4) विद्युत इस्तरी और प्रेस :-

अध्याय पूरा हो गया है | 

CHAPTER 10 - CLICK HERE
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CHEMISTRY FOR CLASS 9th 

पाठ-१ हमारे आस पास के पदार्थ | पदार्थ (द्रव्य) क्या है ? CLASS 9TH - CLICK HERE

पाठ - 2    क्या हमारे आस - पास के पदार्थ शुद्ध है CLASS 9TH CH 2 CLICK HERE

पाठ - 3 परमाणु और अणु                                                              - CLICK HERE


      PHYSICS FOR CLASS 9th
 

पाठ - 8 गति  CLASS 9TH                                                          - CLICK HERE

पाठ - 9 बल तथा गति के नियम                                                      - CLICK HERE

पाठ - 10 गुरुत्वाकर्षण (GRAVITY 9TH CLASS )                          - CLICK HERE

पाठ - 11 कार्य तथा ऊर्जा (work and energy)                                  - CLICK HERE

CHEMISTRY FOR CLASS 10th 

    पाठ - 1 रासायनिक अभिक्रियाएँ और समीकरण                                    -  CLICK HERE  

पाठ-2 अम्ल व क्षार ( ACID AND BASE )                                          -   CLICK HERE

पाठ - 3 धातु और अधातु                                                                       -   CLICK HERE

पाठ - 4 कार्बन व उसके यौगिक                                                             -   CLICK HERE




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